Frequently Asked Questions

कन्या-माताओं के सन्दर्भ में

जी हाँ! यहाँ पर रहने वालों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना अति अनिवार्य है; क्योंकि शिवबाबा ने कहा है- “पवित्रता से ही दुनिया के सारे कार्य होते हैं।” पवित्रता हर आत्मा का स्वधर्म है। पवित्रता और स्वच्छता- ये तो परमात्मा को भी प्रिय है। जब आप अपनी आत्मा को जिसको आप पूरी तरह भूल चुके हैं उसको जानेंगे और अपना असली स्वधर्म पवित्रता को जानेंगे तब खुद ही फैसला कर पाएँगे कि वास्तव में ब्रह्मचर्य क्या है! ईश्वरीय ज्ञान मिलते ही उन सारी बातों का स्मरण होना शुरू हो जाएगा; क्योंकि भगवान ने कहा है- ‘‘न हि ज्ञानेन सदृशम् पवित्रमिह विद्यते।’’ (गीता 4/38) इस संसार में ईश्वरीय ज्ञान के समान पवित्र अन्य कुछ भी नहीं है।
पहली बात, माता-कन्याओं को ही सुरक्षा की आवश्यकता होती है, पुरुषों को नहीं। कोई भी पुरुष खुले मैदान में रात को सो सकता है; लेकिन क्या ये बात किसी महिला के लिए सम्भव है? नहीं। निश्चित सुरक्षित स्थान अवश्य चाहिए। भारत की ऐसी माताएँ-कन्याएँ जिनकी अखण्ड पवित्रता और अव्यभिचारी भावना को देखकर ही भगवान उनके ऊपर स्वर्ग स्थापना करने की ज़िम्मेवारी रखते हैं। भगवान का कहना है कि नारियाँ ही स्वर्ग का द्वार खोलेंगी। लेकिन शंकराचार्य जैसे संन्यासियों का क्या कहना है? वो तो यही कहते हैं- ‘‘नारी नरक का द्वार है।’’ लेकिन भगवान लक्ष्मी जैसी कन्या-माताओं को ही स्वर्ग का द्वार खोलने के लिए निमित्त रखते हैं। बच्चों की पहली गुरु माँ ही होती है। माता गुरु बिगर किसी का उद्धार नहीं हो सकता। घर में जब बच्ची का जन्म होता है तो कितनी ख़ुशी से कहते हैं- घर में लक्ष्मी आई है! बाकी रही ज़ोर-ज़बरदस्ती की बात, तो ये कदापि सत्य नहीं है। यहाँ पर एक दिन के लिए भी कोई कन्या-माता रुकने के लिए आती है तो उनको उनके पति/पिता या अभिभावक की अनुमति लाना अति आवश्यक है और स्थायी रूप से समर्पित होने के लिए तो माननीय अदालत से स्टैम्प पेपरों में एफिडेविट भी लिखवाया जाता है।
जैसे कि हमने आपको पहले भी बताया कि यहाँ पर रहने वाली हर माता-बहन अपनी इच्छा से समर्पित होती है; और भगवान को उन्हें स्वीकार करने के लिए किसी हलफनामा के काग़ज़ या किसी काग़ज़ी कार्यवाही की ज़रूरत नहीं है। ये तो सरकारी अफसरों और समाज को प्रमाण के रूप में दिखाने मात्र के लिए हैं; क्योंकि उनको सिर्फ काग़ज़ की ही भाषा समझ में आती है, श्रद्धा-भावना की भाषा समझ में ही नहीं आती। उन लोगों को दिखाने के लिए ही यह हलफनामा बनाया गया है।
ईश्वरीय ज्ञान से शारीरिक और मानसिक दोनों का विकास होता है। जितना मन को एकाग्र करेंगे उतना मन पावरफुल बनता है और जितना ईश्वरीय सेवा में तन को लगाएँगे उतना शरीर सुदृढ़ होता है। जिस तरह सूर्य नमस्कार करना सभी एक्सरसाइज़ के बराबर है, उसी तरह साक्षात् चैतन्य ज्ञान-सूर्य शिवबाबा के प्रति अपना तन और मन लगाना सभी एक्सरसाइज़ के बराबर है।
ये बात सरासर झूठ है! कोई भी विद्यालय का एक नियम होता है। उस नियम के मुताबिक उन माताओं-बहनों को अपने परिवार वालों से मिलवाया भी जाता है और बात भी करवाया जाता है। लेकिन कुछ कारण से वो लोग सेवाकेन्द्र पर उपस्थित नहीं होते, तो फिर उनके फैमिली वाले नाराज़ होते हैं; और इस सामान्य बात को ले करके मीडिया वाले कुछ ज़्यादा ही शोरगुल मचा देते हैं। अब राई को पहाड़ बनाना ये तो मीडिया वालों की हमेशा से ही विशेषता रही है। कुछ लोगों के परिवार वाले विरोधी भाव से भी आते हैं और उनकी इच्छा के विरुद्ध खींचकर ज़बरदस्ती उनको ले जाना चाहते हैं। इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उनके साथ कोई-न-कोई रहता है।
‘पाति’ शब्द से बना है पति। जिसका अर्थ होता है ‘रक्षक’। महाभारत प्रसिद्ध द्रौपदी की कहानी से तो आप अच्छे से परिचित होंगे। पति कहे जाने वाले पाँच पाण्डव क्या द्रौपदी की रक्षा कर पाए? अगर कर पाए होते तो भगवान को आने की ज़रूरत नहीं थी। हमारा भारत देश जहाँ स्त्री के सम्मान के लिए लोग बड़े-2 युद्ध लड़ जाते थे, आज उसी देश में माताओं-कन्याओं की चीर के ऊपर पल-2 खतरा बढ़ता जा रहा है और समाज और सरकार इसको रोक नहीं पा रही है। इसलिए स्वयं भगवान परमपिता परमात्मा सुप्रीम सोल शिव, भारत की चैतन्य ह्यूमन-गऊओं की रक्षा करने के लिए पति-परमेश्वर बनकर आए हैं। इसलिए उनको भक्तिमार्ग में ‘गोपाल कन्हैया’ भी कहा जाता है। ये स्थूल जानवर गऊओं की बात नहीं है, ये भारत की ही सीधी-सादी सरल स्वभाव वाली कन्याओं-माताओं की बात है। जिनको उनके परिवार वाले जिस खूँटे से बाँध देते हैं, जीवनभर उसी खूँटे से बँध करके रहती हैं। डायवोर्स देने की तो बात ही नहीं। भगवान से हमारा एक सम्बन्ध नहीं है; लेकिन सर्व सम्बंध हैं। कहते भी हैं ना- ‘‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव-2।’’ ये कोई स्थूल दैहिक सम्बंध की बात नहीं है, ये तो आत्मिक चिरस्थाई सम्बन्ध की बात है।
ये कैसा प्रश्न है? क्या कोई परिवार वाले अपनी बेटी, बहन या बहू की मेडिकल जाँच करवाते हैं? सरकार का ही तो ये नियम है कि किसी की इच्छा के बिना मेडिकल जाँच नहीं कराई जा सकती। हम तो सरकार को उनके ही नियमों का बोध कराते हैं। मीडिया वालों का तो काम है लोगों को सच्चाई बताना। सरकार अगर नियम का उल्लंघन करती है, वो बताना। और आप तो हमसे ही प्रश्न पूछ रहे हैं।
अभी हम पुरुषार्थ की यात्रा पर हैं, पुरुषार्थ सम्पन्न नहीं हुआ है। जिस तरह पहाड़ पर चढ़ने वाले को बीच-2 में कोई-न-कोई सहारा लेना पड़ता है, घी में डली हुई पूड़ी भी पकने के बाद ही ऊपर आती है, उसी तरह जब हमारा पुरुषार्थ संपन्न हो जाएगा, हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे, तो फिर इन दवाओं की हमें कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
सफ़ेद कपड़े तो सिर्फ हम ड्रिल के समय पहनते हैं; क्योंकि सफ़ेद रंग पवित्रता का सूचक है। बाकी सारे दिन में कार्य-व्यवहार के लिए तो पिंक साड़ी पहनते हैं; क्योंकि पिंक कलर से परमधाम की भासना आती है। जिस परमधाम में हमको जाना है वैसी अवस्था कार्य-व्यवहार में रहते हुए हमको बनानी है। इसलिए हम पिंक साड़ी पहनते हैं। गवर्मेण्ट के भी तो कितने विभाग होते हैं; जैसे- मिलेट्री है, डॉक्टर्स हैं, उनकी भी अपनी अलग पोशाक होती है। उसी प्रकार हम रूहानी मिलेट्री की भी अपनी पोशाक है ‘पिंक साड़ी’। बाकी रही एण्टर्टेइन्मेण्ट की बात, तो विनाश सामने खड़ा है और आप एण्टर्टेइन्मेण्ट की बात करते हैं? आज की दुनिया में मनोरंजन का अर्थ हो गया है- दूसरों के मन को रंज अर्थात् दूसरों को दुःख देकर सुख लेना। ऐसा मनोरंजन शिवबाबा नहीं सिखाते। जिनके सामने नई दुनिया खड़ी हो, उनके लिए ये विनाशी दुनिया के विनाशी सुख कोई माईने नहीं रखते।
एक ही बात को बार-2 पूछने से व्यक्ति का जवाब तो नहीं बदल जाता। ठीक ही तो कहती हैं- हम बालिग हो चुके हैं, अपनी इच्छा से आए हैं, इसमें बुरी बात क्या है? बाकी रही हिप्नोटाइज़ करने की बात, अगर हम हिप्नोटाइज़ करते तो सभी को ही कर लेते। फिर हमारे विरोध में कोई खड़ा ही ना होता। यहाँ पर आने वाले कितने लोग चले भी जाते हैं, फिर उन पर हिप्नोटाइज़ का असर तो नहीं होता।

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