बाबा वीरेंद्र देव दीक्षितजी की जीवन यात्रा
कम्पिला गाँव में वर्तमान युग को परिवर्तन करने वाले एक ऐसे दिव्य महापुरुष का आविर्भाव हुआ है जिनके तन में परमप्रिय पतित-पावन परमपिता शिव परमात्मा अवतरित होकर सतयुग की स्थापना का कार्य कर रहे हैं। सन् 1969 में दादा लेखराज ब्रह्मा के देहावसान से अब तक ब्रह्मा की आत्मा द्वारा माउण्ट आबू में गुलज़ार दादीजी के तन द्वारा सुनाई जा रही अव्यक्त-वाणियों में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं। लगभग 600-700 करोड़ की आबादी वाले विश्व को ऐसे महापुरुष की पहचान होना भी ज़रूरी है और समय पर होना ही है।

भविष्यवक्ताओं ने भी कहा है -
जूलबर्ण:- संसार के सबसे समर्थ व्यक्ति का अवतरण हो चुका है। वह सारी दुनिया को बदल देगा। उसकी आध्यात्मिक क्रांति सारे विश्व में छा जाएगी।...... एक ओर संघर्ष होंगे, दूसरी ओर एक नई धार्मिक क्रांति उठ खड़ी होगी जो आत्मा और परमात्मा के नए-2 रहस्य को प्रगट करेगी।
ग्रेरार्ड क्राईसे (हॉलैंड):- भारत देश में एक ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ है, जो विश्व कल्याण की योजनाएँ बनाएगा।
प्रोफेसर कीरो:- भारत का अभ्युदय एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में हो जाएगा; पर उसके लिए उसे बहुत कठोर संघर्ष करने पड़ेंगे।
              बचपन
कम्पिला निवासी बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित जी का जन्म एक गरीब किसान ब्राह्मण परिवार में प्रथम फरवरी, सन् 1942 को फर्रुखाबाद जिले (उत्तर प्रदेश) के कायमगंज से उत्तर दिशा की ओर लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित अहमदगंज नामक गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम लीलावती और पिता का नाम श्री सोहनलाल शिव दयाल दीक्षित था। श्री सोहनलाल जी अपना अहमदगंज गाँव छोड़कर अपने ही ननिहाल कम्पिला गाँव में स्थायी रूप से रहने लगे।अतः बाबा दीक्षित जी का पालन-पोषण पौराणिक एवम् ऐतिहासिक नगरी कम्पिला में ही माता-पिता के संरक्षण में होने लगा। है। यही क्षेत्र ब्र.वि.शं. तीन मूर्तियों का आदि सृष्टि का स्थल माना गया है, जिसको अत्यंत प्राचीन होने के कारण आज भुला दिया है ।
    शिक्षा 
मटर की सूखी रोटी खाकर हाई स्कूल की परीक्षा पास की, हाईस्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कम्पिला थाने में इंचार्ज रह चुके सिद्दीकी दरोगा के निजी घर (हमीरपुर जिले) से इंटर की शिक्षा पूरी की। उनकी एक छोटी बहन भी है जो कि उनके पिताजी के संरक्षण में रहने लगी; क्योंकि बाबा की माताजी का देहान्त सन् 1965 में हो गया था। उस समय बाबा की उम्र 23 वर्ष के लगभग रही। फिर एटा में जे.टी.सी. की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कम्पिला परिषदी प्राइमरी विद्यालय में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का काम 3 वर्ष तक किया, फिर वहाँ से निकलकर कायमगंज बालिका विद्यालय में भी 2 वर्ष तक पढ़ाते रहे। बाबा दीक्षित जी ने सन् 1969 में गुजरात यूनिवर्सिटी के हॉस्टल (अहमदाबाद) में रहकर ‘सृष्टि का आदि पुरुष कौन?’- इस विषय पर अनुसंधान (पी.एच.डी) का काम शुरू किया।

पीएचडी रिसर्च वर्क के दौरान ब्रह्माकुमारियों से सम्पर्क और संघर्ष

ब्रह्माकुमारियों से सम्पर्क

रिसर्च वर्क के दौरान 30 नवम्बर, 1969 को पहली बार बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित ने ब्रह्माकुमारी संस्था के 2B प्रभु पार्क, अहमदाबाद स्थित पालड़ी सेवाकेंद्र में प्रवेश किया। वहाँ पर ब्रह्माकुमारी वेदांती बहन ने इन्हें अटैण्ड किया। वह बहन कुछ सुनाती थी तो उन बातों का बाबा विरोध करते जाते थे; क्योंकि वे रिसर्च माइण्डेड होने के कारण शास्त्रों के आधार पर हर बात को मानते रहे, इसलिए वे उनकी बातों को कट करते रहे। अतः कोर्स के दौरान सातवें दिन उन्हें अटैण्ड करने वाली वह बहन कहीं चली गई तो बाबा दीक्षित जी उस केंद्र की संचालिका ब्रह्माकुमारी सरला बहन से मिले और उनके साथ डिस्कशन करने से कुछ प्रश्नों का समाधान भी प्राप्त हुआ; फिर भी वह संचालिका बहन इन्हें पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाई। बाद में उन्होंने बाबा से कहा कि अगले दिन कलकत्ते से ब्र.कु. रमेश भाई आने वाले हैं, आप उनसे अपने प्रश्नों का समाधान ले लीजिए। क्योंकि सरला बहन को अंदर ही अंदर यह लगने लगा कि हम इनको सन्तुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। दूसरे दिन रमेश भाई आए और जब वे बाबा से मिले तो उन्होंने बाबा से एक ही प्रश्न पूछा कि आपको परमपिता परमात्मा शिव का जो रूप यहाँ बतलाया गया है वह पसंद आया, उसकी स्मृति आपको पसंद है तो बाबा ने जवाब दिया कि हाँ, यह बात हमको अच्छी लगी है कि परमपिता परमात्मा शिव ज्योतिर्बिन्दु है, उसको याद करने से हमारी मन-बुद्धि रूपी ज्योतिर्बिंदु आत्मा सूक्ष्म स्टेज धारण करेगी। सूक्ष्म को याद करेंगे तो बुद्धि सूक्ष्म बनेगी। जब बाबा ने याद की प्रक्रिया अच्छी बताई तो रमेश भाई ने बताया कि जब आपको याद की प्रक्रिया अच्छी लग रही है तो आप कुछ दिनों तक यह अभ्यास करिए। अभ्यास करने के बाद आपको स्वतः ही सब प्रश्नों का समाधान मिल जाएगा। बाद में वेदांती बहन ने यह बात भी कही कि आप इसके साथ-2 शिवबाबा की वाणियाँ भी पढ़ते रहिए। बाबा ने उनकी दोनों बातें स्वीकार कर लीं।

सरला बहन ने मुरलियाँ पढ़ने पर रोक लगाई

बाबा सरला बहन के पास मुरलियाँ लेने के लिए गए तो उस संचालिका बहन ने मुरलियाँ देने से यह कहकर इनकार कर दिया कि आप शास्त्रकार हैं, आप शिवबाबा की वाणी पढ़ने के लायक नहीं हैं। इन बातों से उनको बड़ा दुःख हुआ कि भगवान के महावाक्य पढ़ने और समझने के हकदार तो सभी हैं। वेदांती बहन (जिन्होंने बाबा को टैकिल किया था) ने बाबा से कहा कि उचित समय आने पर आपको मुरलियों का बंडल निकाल करके दे देंगे। अतः जिन दिनों इंचार्ज सरला बहन वहाँ मौजूद नहीं रहती थी उन दिनों बाबा को वहाँ से वाणियों का बंडल मिलता रहता था, फिर बाबा उन वाणियों को पढ़कर वापस भी कर देते थे और यह क्रम बड़ी बहन की अनुपस्थिति में लगातार चलता रहा अर्थात् वे हर तीसरे-चौथे दिन मुरलियों का स्टॉक ले जाते रहे। उनसे उनको इतनी पुष्टि और संतुष्टि मिली कि वे गद्गद् हो गए।

माउण्ट आबू में प्रकाशमणि दादी ने बाबा को प्रताड़ित किया

माउण्ट आबू पहुँचने के बाद ब्रह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका प्रकाशमणि (कुमारिका) दादी ने बाबा दीक्षित जी से कहा कि आप शाम को चार बजे हमसे मिलें। बाबा को यह पता नहीं था कि वह क्यों बुला रही हैं। चार बजे वे जब दादी के पास पहुँचे, तो पहुँचते ही दादी ने उन्हें डाँटना शुरू कर दिया कि तुम जैसे शांति से पहले रहते थे, यहाँ आते थे वैसे ही शांति से रहो। तुम इधर-उधर धमचक्र क्यों मचाते हो। तो उन्होंने कहा कि दादी जी हम तो शिवबाबा की बातें करते हैं, कोई फालतू बातें तो करते ही नहीं और वैसे भी शिवबाबा ने तो यह बोला ही है कि शिव के मंदिर में दो तरह के पक्षी होते हैं- एक होते हैं कबूतर और एक होते हैं ज्ञान की कंठी वाले तोते। यह सारा मिसाल शिवबाबा ने हम ब्राह्मण बच्चों के लिए ही दिया है। अतः बाबा ने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि भगवान की जो राइट बातें हैं, जो हमने सुनी हैं, हम तो वह ज़रूर सुनाएँगे। आपके कहने से हम मानने वाले नहीं हैं। बस, इतना सुनते ही दादी एकदम गुस्सा हो गईं। तुरन्त उन्होंने एक चपरासी को बुलाकर कह दिया कि इनको जल्दी से जल्दी बस स्टैण्ड पर पहुँचाकर रवाना कर दो। यह घटना है जनवरी, सन् 1974 की।

ईश्वरीय सेवा पर रोक लगाई गई

ईश्वरीय सेवा में ज़्यादातर उन्हें लिट्रेचर बेचने का काम ही सौंपा गया। कभी-2 सेण्टर के लिए स्टेशन से वे पार्सल छुड़ा कर लाने तथा पार्सल बुकिंग करने के लिए भी जाते थे। उन दिनों कभी-2 क्लर्क को पैसा भी देना पड़ता था। तो वे भले लेट कर लेते थे; लेकिन रिश्वत के बतौर क्लर्क को कभी पैसा नहीं देते थे। बाबा के लेट आने के कारण केंद्र की संचालिका बहन नाराज़ हो जाया करती थी और उनको यह कहा करती थी कि तुम किसी भी काम में टाइम वेस्ट बहुत करते हो। ऐसे ही एक बार इस पर जब तक बाबा दीक्षित जी उस बहन को कुछ बोलें तब तक वह दूसरे भाई का मिसाल देकर कहने लगी कि देखो, वह भाई कितनी जल्दी काम करके लाता है। यह बात सुनते ही बाबा दीक्षितजी को रोना-सा गया और उन्होंने कहा कि हम क्या करें, बताइए? जिस भ्रष्टाचार से बचने के लिए हम बार-2 नौकरियाँ छोड़-2 करके बैठे हैं और आप हमें उसी बात के लिए दबाव डाल रही हैं। इस काम के लिए तो हम आपसे पैसा माँग सकते हैं और ही हमारे पास इतना पैसा है। ये सब बातें सुनने के बावजूद भी उस संचालिका बहन ने उनको कहा कि अच्छा ठीक है, तुमको जैसे हम बताते हैं वैसे करो। यदि नहीं चाहते हो तो आश्रम में सेवा मत करो। बाबा दीक्षित जी मंदिरों में जा-जाकर सेवा करने लगे। सुबह को क्लास अटैण्ड करना और रिसर्च से जो टाइम बचता था उसमें मंदिरों में जाकर भाई-बहनों की सेवा करने लगे, जिसमें सेण्टर के भी स्टूडेण्ट्स मंदिर में आकर बाबा के साथ क्लास करने लगे। वे लोग बाबा को अपने घर बुलाने लगे। उनमें से एक मनु भाई (जो कि बाद में अहमदाबाद छोड़कर अमेरिका चले गए थे) ने उनको अपने घर ले जाकर क्लास शुरू करवा दिया। शाम को बाबा मनु भाई के घर में शिवबाबा की मुरली पढ़ते थे और उसकी व्याख्या जैसा वे समझते थे वैसा देने लगे। यह बात जब सेण्टर की बहनों को पता चली तो वे बहुत नाराज़ होने लगीं; क्योंकि उनके अंदर गलत धारणा बैठ गई कि यह तो हमारे स्टूडेण्ट्स को तोड़ रहा है और अपनी कमाई करना शुरू कर दिया है। जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी। ब्रह्माकुमारियाँ विरोध करती रहीं। तो छः महीने तक यह सिलसिला चलता रहा। बी॰के॰ क्लास में तो बाबा जाते ही रहते थे। संचालिका बहन ने इनसे आश्रम का काम लेना पहले ही बंद कर दिया था और इस तरह मतभेद बढ़ता ही गया।

ब्रह्माकुमारी विद्यालय से निकाले गए

माउण्ट आबू से लौटे तो लौटने के बाद अचानक कुमारिका दादी ने कोई आदेश अहमदाबाद इंचार्ज को दे दिया। उस आदेश के अनुसार उन्होंने बाबा दीक्षित जी का क्लास में बैठना बंद करा दिया। एक दिन ऐसे हुआ कि क्लास हो रहा था, अचानक कुछ भाई लोग आए और बाबा से कहा कि दादी ने आपको क्लास करने के लिए मना किया हुआ है। तब बाबा ने उनसे कहा कि दादी ने मना किया हुआ है; लेकिन शिवबाबा ने तो किसी वाणी में ऐसे नहीं कहा कि किसी को क्लास करने से मना कर दो। हमारी कोई गलती हो तो वह हमें बताइए, तो उसे हम सुधारेंगे। तो उन्होंने कहा कि नहीं, हम तुम्हारी कोई बात नहीं सुनेंगे। तब बाबा ने भी कहा कि तो हम आपकी बात भी नहीं सुनेंगे। यह कहकर वे क्लास में ही बैठे रहे। फिर वे चार-पाँच लोग अंदर चले गए और वहाँ टीचर बहन से कुछ परामर्श किया। परामर्श करने के आधा घंटे के बाद चार-पाँच भाई लोग बाहर आए और किसी ने बाबा के हाथ पकड़े और किसी ने पाँव पकड़े और उनको उठाकर सीढ़ियों से नीचे ले जाकर आश्रम के बाहर छोड़ दिया। उसके बाद दो भाई लोग दरवाज़े पर चौकसी के लिए खड़े हो गए, ताकि वे क्लास करने के लिए अंदर जा पाएँ। तीन दिन तक यह क्रम चलता रहा। जैसे ही बाबा सुबह और शाम क्लास करने के लिए वहाँ जाते थे, तो वे भाई लोग वहाँ दरवाज़े पर उनको खड़े हुए मिलते थे। बाकी सब भाई-बहनों को क्लास करने जाने दिया जाता था; लेकिन केवल बाबा बाहर दरवाज़े पर खड़े रहते थे। फिर उनका वहाँ जाना ही छूट गया। बाबा दीक्षित जी सन् 1975 में, 33 वर्ष की उम्र में अहमदाबाद छोड़कर कम्पिला गाँव में अपने घर वापस लौट गए। घर में भी गाँव के कुछ लोगों ने उनके पिताजी सोहनलाल दीक्षित जी को यह कहकर मतिभ्रम कर दिया था कि आपका लड़का ब्रह्माकुमारियों में फँस गया है। उन लोगों की बातों के प्रभाव में आकर पिताजी ने बाबा की एक भी बात नहीं सुनी। इनके घर का बाहर का जो कमरा था वह भी बाबा को देने से इनकार कर दिया। इसी बीच में बाबा ने शिवबाबा की मुरली से एक महावाक्य पकड़ लिया कि ‘‘आवाज़ दिल्ली से निकलेगा।’’ तुरन्त ही वे कम्पिला गाँव छोड़कर दिल्ली चले गए।


  
दिल्ली से एडवांस पार्टी की शुरुआत

दिल्ली पहुँचते ही उनको सफलता मिल गई। वहाँ के जो खास बीस-पच्चीस सेवाकेन्द्र थे उनमें उन्होंने चक्कर लगाए और चक्कर लगाते-2 उनको शाहदरा रोहतास सेवाकेन्द्र के कुछ भाई-बहनों को ईश्वरीय ज्ञान सुनाने का थोड़ा मौका मिलने लगा, उन सेवाकेंद्रों में भी जो यमुना के किनारे के सेवाकेन्द्र थे वहाँ के ज़्यादातर जिज्ञासु उनके सम्पर्क में आने लगे। सन् 1976 तक जो लोग उनके सहयोगी बने थे ।उनमें बी.के. रवीश कुमार सक्सेना और बी.के. अशोक पाहूजा शामिल थे। ये लोग बाबा के सक्रिय सहयोगी बन गए और शुरुआत में इन्होंने बाबा का लिट्रेचर भी छपवाया। यह खबर तथाकथित ब्रह्माकुमार-कुमारियों के कान में लगती रही थी और उनके अंदर ही अंदर अशांति और क्रोध पैदा हो रहा था। तो उन्होंने जीप,कार लेकर बाबा दीक्षित जी का पीछा करना शुरू कर दिया।बाबा समझ गए कि अब तो ये लोग हमारा पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं। इसलिए बाबा ने दिल्ली का ऑल रूट पास बनवा लिया और एक जगह से दूसरी जगह, दूसरी जगह से तीसरी जगह, ऐसे सारी दिल्ली में घूमने लगे। आर.के. पुरम दिल्ली में एडवांस पार्टी का एक सेवाकेंद्र खुल गया।


आल इंडिया टूर

उस समय सस्ते में ऑल इंडिया रेलवे टूर टिकट भी बनते थे। 150 रुपये में, 250 रुपये में और 300 रुपये में दो-2, तीन-2 महीने के सर्कुलर रूट पास बनवाकर वे सारे भारत में जून, सन् 1982 तक चक्कर लगाते रहे। 78, 79, 80,81, 82 तक 5 साल टुर में ही रहे। धर्म-वर्म शाला में टिके रहते थे। एक-दो बार ऐसा हुआ धर्मशाला में बहुत भीड़ हो गई और थैला रखने के लिए अलमारी भी छोटी-सी नहीं मिली, बरसात के दिन थे, तो फिर पार्क में ही सोना पड़ा पटिया के ऊपर। पटिया पड़ी रहती है ना! रात में बरसात हुई, प्लास्टिक ओढ़ के सो गए। एक दिन सोए, दो दिन सोए और बरसात रोज हो रही है!..  फिर जब बाबा दीक्षित जी कानपुर में थे तो कम्पिला गाँव के किसी व्यक्ति से उनकी मुलाकात हुई और उसने बताया कि आपके पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है, यदि आप घर पहुँचें तो बेहतर होगा। तो बाबा दीक्षित जी ने उनको बतलाया कि दो दिन के बाद हमारा दिल्ली जाने का प्रोग्राम है, तो उस वक्त हम कम्पिला होते हुए दिल्ली जाएँगे। दो दिन बाद जब तक बाबा घर आए तो देखा कि पिताजी ने शरीर छोड़ दिया था। उनकी छोटी बहन ने क्रिया कर्म किया था।

कम्पिल से सेवा का विस्तार और ब्रह्माकुमारियाँ का विरोध
सन् 1982 में बाबा अपने पैतृक गाँव कम्पिला के अपने ही घर में स्थायी हो गए। 1983 . में पुष्पा माता ने अपनी कन्या ब्र.कु. कमला देवी शर्मा को ईश्वरीय सेवार्थ बाबा के पास सरेण्डर कर दिया और तब से वह कन्या यज्ञ माता के रूप में बाबा की सहयोगी बनी। दिल्ली से, कानपुर से, वाराणसी से जो भी पार्टियाँ आती रहीं वे एडवांस ज्ञान की परवरिश लेती रहीं। धीरे-2 आने वालों की संख्या बढ़ने लगी। सन् 89-90 तक आते-2 एक ही वर्ष में दक्षिण भारत तथा अन्य क्षेत्रों से नौ ब्रह्माकुमारियाँ अपने-2 सेण्टर छोड़कर यहाँ बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित जी और माता कमला देवी जी की देख.रेख में समर्पित हो गईं।माउण्ट आबू के विपक्षी ब्रह्माकुमार-कुमारियों ने कम्पिला में एडवांस पार्टी के रूप में चल रहे इस ईश्वरीय परिवार का नाम शंकर पार्टी रख दिया है, इधर माउण्ट आबू की मुख्य प्रशासिका प्रकाशमणि दादी से चारों ओर की ब्रह्माकुमारी इंचार्जों ने शिकायत करना शुरू कर दिया कि यह शंकर पार्टी हमारे सभी फॉलोअर्स को तोड़कर कम्पिला ले जा रही है, इसलिए आप कुछ कीजिए। इस प्रकार के सिद्धांतों में मत भिन्नता के कारण दादी ने सीकर राजस्थान के एक ब्रह्माकुमार; राजकुमार सहगल को शंकर पार्टी का विरोध करने के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। इस प्रकार बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित के अपोजीशन में ढेर सारे प्रिंट किए हुए मैटर्स सभी ब्रह्माकुमारी आश्रमों में भेजे जाने लगे। बल्कि अखबारों द्वारा इतना तीखा विरोध तो तथाकथित डुप्लीकेट विष्णु पार्टियों ने भी नहीं कर पाया जितना कि सहगलजी द्वारा मा. आबू में प्रिंट करके बाबा के पास और सभी बी.के. आश्रमों में भिजवाया गया है। जिसमें यह भी प्रिंट किया गया है कि वीरेन्द्र आप जो वाणी चलाते हैं उसे आप बंद कर दीजिए


बाबा वीरेंद्र देव दीक्षितजी के जीवन की कुछ विशेषताएँ

1998

Attack in Kampila Center

10 षड्यंत्रकारी  -1. दशरथ . पटेल (मुखिया)   2. दिल्ली के अशोक पाहुजा, सहयोगी रविश सक्सेना के साथ 3. उत्तर प्रदेश के राम प्रताप सिंह चौहान खुर्जा 4. कलकत्ता के चतुर्भुज अग्रवाल 5. दिल्ली की जया भारद्वाज 6.नारनौल-हरियाणा की रेणुका 7. मथुरा की तारा देवी 8. गुजरात की मीना कुमारी 9. मुजफ्फरनगर के कैलाशचन्द्र और 10. अग्र आयुध के रूप में इस्तेमाल किया गया कलकत्ता के प्राण गोपाल बर्मन को

पुलिस अधिकारियों ने अचानक ही दिनांक 16-4-1998 को, देश के अनेक राज्यों से आई हुई कन्याओं-माताओं से भरे-पूरे विद्यालय पर आक्रमण कर दिया अर्थात् विद्यालय द्वारा बिजली बिल अदा करने के बावजूद भी 16-4-1998 को प्रातः 9 बजे बिजली कट कर दी गई और उसी दिन दोपहर को कम्पिल, कायमगंज, शमशाबाद थाने की पुलिस बलों ने ट्रक भर पी.एस.सी. फोर्स लेकर, बिना किसी पूर्व नोटिस दिए बिजली चोरी के झूठे आरोप में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पर छापा मार दिया। सन् 1998 में बाबा की आयु 58 वर्ष थी, फिर भी उनके साथ पुलिस कर्मियों ने इतनी बेरहमी से व्यवहार किया कि कोई भी व्यक्ति अगर पत्थर दिल का बना हो तो इस दृश्य को देख कर बिना आँसू बहाए नहीं रह सकता। निर्दोष बाबा को आततायियों की भाँति घर से बाहर खींच-2 कर लेकर गए। इतना ही नहीं जब पुलिस वालों ने बाबा को सड़क किनारे वाले नाले में निर्दयतापूर्वक घसीटा तब बाबा का पैर नाले में गिर गया, बाबा का पजामा भी निकल गया। फिर भी ऐसी ही अवस्था में बाबा को घसीटते रहे और खींचकर जीप में डाल दिए। वयोवृद्ध बाबा की इतनी बेइज़्ज़ती कर उन्हें साथ लेकर गए। पशुओं के साथ भी इतनी बेरहमी से व्यवहार नहीं किया जाता होगा। षड़यंत्रकारियों ने बाबा को जान से मारने के लिए उस टाइगर नाम के गुण्डे को 70 हज़ार की सुपारी भी दी थी। उस रात टाइगर बाबा को मारने ही वाला था; लेकिन उसी दिन पुलिस अधिकारी ने बाबा को अन्दर की बैरक में डाल दिया और इस प्रकार टाइगर बाबा को मारने में असफल हो गया।


अंततः बेल याचिका सं. 601/98 के उत्तर में माननीय न्यायाधीश बिंद्रा प्रसाद ने कहा – ‘इन परिस्थितियों में बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित द्वारा बिजली की चोरी का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है, अत: याचिकाकर्ता बेल मंजूर करवाने के लिए योग्य है|’

WEB OF FAKE ALLEGATIONS


बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षितजी पर आज तक एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है; फिर भी लगातार उनको आरोपों के तहत कटघरे में खड़ा किया है।

(
नोटबाबाजी और आध्यात्मिक विश्वविद्यालय को लगभग 29 क्लीन चिट मिल चुकी हैं )





बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित और AIVV पर लगाए गए झूठे केसेस और उनकी न्यायलय द्वारा मिली क्लीन चिट

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