Frequently Asked Questions

बाबा वीरेंद्र देव दीक्षितजी

इसमें बड़ी बात क्या है? देश को आज़ाद करने के लिए न जाने कितने नेताओं को जेल जाना पड़ा। गाँधीजी, नेहरुजी आदि कितने नेताओं को तो झूठी आज़ादी के लिए जेल जाना पड़ा। सच्ची स्वतंत्रता तो स्व माने आत्मा, तंत्र माने पद्धति या प्रणाली यानी कि आत्मिक स्वतंत्रता है।
बाबा के ऊपर ढेर सारे केसेस लग रहे हैं और वो सारे के सारे केसेस लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा झूठे साबित हो चुके हैं; और आगे भी झूठे ही साबित होंगे। बाबा के ऊपर जो झूठे आरोप लगे थे उसके पीछे जो कारण हैं, क्या आप उस कारण को जानते हैं? माउण्ट आबू में दादा लेखराज ब्रह्मा बाबा के द्वारा सुप्रीम सोल ने ब्राह्मण धर्म की रचना की थी; लेकिन अचानक ही उनकी 69 में, दादा लेखराज ब्रह्मा बाबा का शरीर छूटने के पश्चात् ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हलचल में आने लगीं। अब सुप्रीम सोल को तो नई सृष्टि रचनी ही थी; और ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के द्वारा ही कराना था। जैसे कि आप भी जानते ही होंगे- जंगल शेर के बिना खाली नहीं होता। एक शेर चला जाता है तो दूसरा शेर आ जाता है। ठीक वैसे ही दादा लेखराज ब्रह्मा के जाने के पश्चात् शंकर के पार्टधारी सृष्टि रूपी रंगमंच पर उपस्थित हो जाते हैं। उन दिनों बाबा अहमदाबाद में पीएचडी रिसर्च वर्क में व्यस्त थे। वहीं पर उनको ब्रह्माकुमारियों से बेसिक ज्ञान भी मिला; और उनके द्वारा सुप्रीम सोल ने ज्ञान मुरलियों का शास्त्र अनुकूल व्याख्या देना शुरू किया; लेकिन ब्रह्माकुमारियाँ कहती थीं कि शास्त्र सब झूठे हैं। तो बाबा को शास्त्रकार घोषित करके बाबा के ऊपर दबाव डालना शुरू किया- यहाँ आपको वैसे ही ज्ञान सुनाना है जैसे कि हम सुनाते हैं। लेकिन बाबा का कहना था कि हम मनुष्यों का ज्ञान नहीं सुनाएँगे। हम वही ज्ञान सुनाएँगे जो सुप्रीम सोल ने दादा लेखराज ब्रह्मा के द्वारा बोला है। और इस तरह मतभेद बढ़ता ही गया और आखरीन 1975 में ब्रह्माकुमारी विद्यालय से ही बाबा को प्रताड़ित करके निष्कासित कर दिया। {जैसे आचार्य चाणक्य को धनानंद ने निकाला था।} बाद में 1982 से फिर बाबा ने अपने ही पैत्रिक गाँव कम्पिला के अपने घर से स्थायी रूप से विश्व-कल्याण का कार्य संचालन करना शुरू किया। बी.के. सेवाकेन्द्रों से आने वाले जो ब्रह्माकुमार-कुमारी भाई-बहन असंतुष्ट थे, वो बाबा के द्वारा दी गई व्याख्या से संतुष्ट होने लगे और बाबा के पास आने वाले जिज्ञासुओं की संख्या बढ़ती ही जाने लगी। मात्र भारत से ही नहीं; लेकिन विदेशों से भी भाई-बहनें कम्पिला के आध्यात्मिक विद्यालय में आने लगे। अब ब्रह्माकुमारी विद्यालय में रहने वाले कोई भी ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारियाँ बाबा को ज्ञान के आधार पर तो नहीं हरा सकते, तो फिर बाहुबल पर उतर आए; और अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए और बाबा की छवि को मिटाने के लिए कुछ दुष्ट आत्माओं को ले करके बाबा के ऊपर ढेर-के-ढेर बनावटी और झूठे केसेस डाल दिए। जिसके परिणाम स्वरूप थोड़े समय के लिए बाबा को जेल भी जाना पड़ा।
बड़े-2 पैसे वालों से प्रभावित हुए टी.वी. चैनल्स, अख़बारों और ढेर-की-ढेर मासिक पत्रिकाओं के द्वारा समाज और प्रशासन में सरासर झूठा वातावरण बनाके किसी व्यक्ति के ऊपर झूठे आरोप लगाना, ये तो बड़ा आसान है! लेकिन यहाँ बात ये है कि वो सारे के सारे केसेस झूठे साबित हो चुके हैं। यहाँ मात्र एक ही कारण से हम उनको भगवान मानते हैं कि उनके भृकुटि के मध्य में विराजमान हैं सदा कल्याणकारी ‘सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् सुप्रीम सोल’। सूर्य को कोई कितनी भी कीचड़ उछाल कर उसकी रोशनी को ढकना चाहे; लेकिन ढक पाएगा? नहीं ढक सकता। सन् 1998 का ऐतिहासिक दिन था 15 अगस्त, जिस दिन बाबा जेल से बाहर आए। ठीक वैसे जैसे वसुदेव बालकृष्ण को अपने बुद्धि रूपी टोकरी में बिठाकर, जेल के कपाट खोलकर, नई सृष्टि को सुदृढ़ और सुरक्षित करने हेतु बाहर लाए।
कलंक लगाने वाले तो अज्ञानी ठहरे ना! जैसे हीरे को भी पहचानते नहीं तो पत्थर मानके फेंक देते हैं। ठीक ऐसे ही सदा कल्याणकारी सुप्रीम सोल जो सदा सत्य हैं, कभी असत्य बनते ही नहीं, जिसको सारी दुनियाँ ‘सदाशिव’ के नाम से जानती है, अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदा तत्पर रहती है, उसको ही नहीं पहचानने के कारण अंगुली उठा देती है। लेकिन शिवबाबा का कहना है- ‘‘निंदा हमारी जो करे, मित्र हमारा सो होय।’’ बाबा इस बात को जानते हैं कि आज जो सारी दुनिया उनकी निंदा कर रही है, कल वो महिमा भी करेगी। इसलिए सारे कलंकों को उन्होंने स्वेच्छा से धारण कर लिया और ‘कलंकीधर’ के अन्तिम भगवद्पार्टधारी के रूप में संसार में प्रत्यक्ष हुए।
भगवान श्री राम ने जंगलों में गुप्त रहकर ही रावण से युद्ध किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने गाँवड़ों-2 में रहकर ही युक्ति से कंस को धराशायी किया था। शंकर भगवान ने सारी दुनिया में भाग-2 कर ही भस्मासुर को भस्मीभूत किया था। ये भगवान की सबसे बड़ी खासियत है कि चाहे कोई कितना भी दुराचारी, पापी क्यों न हो, सबको सुधरने का मौका देते हैं। महाभारत प्रसिद्ध शिशुपाल की कहानी को तो आप जानते ही होंगे। 100 बार तक भगवान ने उसको माफ़ किया जो आमने-सामने के टकराव को यथासंभव टाला जा सके और होने वाले नुकसान को बचाया जा सके। ठीक यही नीति यहाँ पर भी अपनाई गई है।
देखिए, एक बात हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि बाबा ने कभी किसी लड़की को हाथ पकड़कर भगाया नहीं है, तंत्र विद्या का आधार लेकर छल-कपट का रास्ता नहीं अपनाया और न ही ऐसा रास्ता अपनाने के लिए औरों को शिक्षा दी। सुप्रीम सोल को तो अपना रथ नहीं है, तो फिर स्वार्थी भी नहीं है। थोड़े समय के लिए सृष्टि पर आते हैं, स्वर्ग बनाकर वापस परमधाम चले जाते हैं। वो जिसमें प्रवेश करते हैं, वो तो साक्षात् मनुष्य-सृष्टि के पिता हैं; क्योंकि ऊँच-ते-ऊँच बाप ऊँच-ते-ऊँच में ही प्रवेश करते हैं। वो कोई भी नीचा कर्म कर ही नहीं सकते। शिवबाबा जैसा नरक को स्वर्ग बनाने वाला, नर को नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाला ज्ञान तो मनुष्य गुरु कोई दे ही नहीं सकते। वो तो सिर्फ शास्त्रों की बात को ही सुनाते हैं। शिवबाबा यही सिखाते हैं कि घर-गृहस्थ में रहते हुए पवित्र जीवन बिताना है; लेकिन कुछ कन्याओं के माता-पिता उनको पवित्र रहने ही नहीं देना चाहते, ज़बरदस्ती उनकी शादी करवाना चाहते हैं। तब वे कन्याएँ माननीय कोर्ट से स्वीकृति ले करके आध्यात्मिक परिवार में आ जाती हैं और तब मीडिया वाले कुछ ज़्यादा ही शोरगुल मचाते हैं। कोर्ट के फैसले होने से पहले ही एक निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहरा देते हैं।
शिवबाबा के लिए अपने-पराए कोई भी नहीं हैं। गीता में भगवान ने कहा है- ‘‘समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।’’ (गीता 9/29) मेरे लिए न कोई ज़्यादा प्रिय है और न कोई द्वेष करने योग्य है। सभी गाँव वालों और रिश्तेदारों के लिए एक ही नियम लागू है।
शिवबाबा ने मुरली (ता.4.9.73 पृ.2 मध्य) में कहा है कि बाबा बड़ी सभाओं में तो नहीं बैठ समझाएँगे। लाउडस्पीकर पर कब पढ़ाई होती है क्या? टीचर सवाल कैसे पूछेंगे? लाउडस्पीकर पर रिस्पॉण्ड कैसे दे सकेंगे? इसलिए थोड़े-2 स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं। (मु.ता.15.9.76 पृ.3 आदि) जिससे स्टूडेंट्स सुप्रीम टीचर की रूहानी दृष्टि ले सके और उनके वाइब्रेशंस को डायरैक्टली कैच कर सके। आप किसी भी यूनिवर्सिटी में चले जाइये, कहीं पर भी लाउडस्पीकर पर पढ़ाई होती नहीं है। और गीता में भी श्लोक (4/34) आया है- ‘तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।’ अर्थात् परम आदरपूर्वक, प्रश्नोत्तरपूर्वक और यज्ञ-सेवा के द्वारा ईश्वरीय ज्ञान को जान लेना चाहिए। अन्य संस्थाओं के गुरुलोग स्टुडेण्ट्स के सभी प्रश्नों का रेस्पॉण्ड नहीं दे सकते हैं। उनको तो धन चाहिए, मान-मर्तबा खूब चाहिए; इसलिए बड़ी-2 सभाओं में बैठ करके ज्ञान सुनाते हैं। बाबा ने अव्यक्त वाणी (ता. 30.12.85) में कहा है कि ‘मुख का पाठ तो कई सुनाने वाले हैं, सुनने वाले भी हैं; लेकिन जीवन ही पाठ बन जाए- ये है विशेषता’।
गुरु माना भारी अर्थात् वजनी। सद्गुरू सभी से भारी है; क्योंकि मनुष्यमात्र की सद्गति करने वाला है, सबको साथ ले जाने वाला है, मुक्ति-जीवन्मुक्ति में ले जाने वाला है, सदा साथ निभाने वाला सद्गुरू एक को भी बीच में छोड़कर भागने वाला नहीं है। ‘मेरा बाबा’ दोनों इकट्ठे हैं। मुरली (ता.9.3.89 पृ.1 मध्य) में कहा है- ‘‘साकार और निराकार के मेल को ‘बाबा’ कहा जाता है।’’ एक हैं सभी आत्माओं के बाप निराकार शिवज्योति, जिनका अपना कोई देह नहीं है। और दूसरे हैं मनुष्य-सृष्टि के पिता- प्रजापिता, जिनका 5 तत्वों का बना हुआ देह है। वो देहधारी हैं; क्योंकि मन-बुद्धि से देह को धारण करने वाले मनुष्य हैं। लेकिन निराकारी-निर्विकारी-निरहंकारी शिव ज्योतिबिंदु के संग के रंग में ऐसे रंग जाते हैं कि अपनी देह को, देह के पदार्थों को, देह के सम्बन्धियों को, देह की सारी दुनिया को ही भूल जाते हैं; इसलिए भक्तिमार्ग में शंकर को ही अर्धोन्मिलित चढ़ी हुई निराकारी स्टेज वाली आँखें और भस्म रमाते हुए दिखाया जाता है। गीता में श्लोक (5/19) भी आया है- “इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः। निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।। अर्थात् जिनका मन एक शिव बाप की संतान आत्मा-2 भाई-2 की समानता में स्थिर है, उन्होंने इस संसार में ही जन्म-मृत्यु रूपी संसार को जीत लिया है। क्योंकि ब्रह्मतत्व दोष-पापरहित और समान है; इसलिए वे ब्रह्मतत्व में ही स्थिर हैं। मुरली (ता. 7.3.67 पृ.2 अंत) में भी कहा है- “थोड़े ही दिन इस दुनिया में हो, फिर तुम बच्चों को ये स्थूल वतन भासेगा ही नहीं, मूलवतन और सूक्ष्मवतन ही भासेगा।”
नहीं, शिवबाबा सिर्फ अपने बच्चों से ही मिलते हैं। और उनके बच्चे वही हैं जो भगवत् गीता में आए हुए महावाक्य के अनुसार साधारण तन में आए हुए भगवान को यथार्थ रीति पहचानते हैं।
शिवबाबा कहते हैं- अगर मिलना है तो समान बन करके मिलो। इन चर्म चक्षुओं से तो न आत्मा दिखाई देती, न परमात्मा दिखाई देते। दिव्य चक्षु अर्थात् तीसरा नेत्र खोलने के लिए ही तो ये ज्ञान दिया जाता है। शिवबाबा है सम्पूर्ण विदेही-आत्माभिमानी, निराकारी-निर्विकारी-निरहंकारी और बच्चे सम्पूर्ण साकारी-विकारी-देहभानी बने रहें, तो आप बताइये- मिलन सम्भव है?
हर कर्म के पीछे भाव देखा जाता है। इसलिए कहा जाता है- भाव प्रधान, कर्म प्रधान नहीं। आतंकवादी तो हिंसा और क्रोध से वशीभूत हो करके ऐटम बम फोड़ना चाहते हैं, मात्र अपने स्वार्थ के लिए। लेकिन, ऐटम बम विस्फोट के बाद प्रकृति में जो हलचल मचेगी, जिस भयानक परिस्थिति की उत्पत्ति होगी, उससे प्रकृति को पुनरुद्धार करने की ताकत क्या किसी आतंकवादी के पास है? ये काम तो सिर्फ और सिर्फ प्रकृति-पति विश्वनाथ भोलेनाथ के पास ही है। कोई भी पिता अपने बच्चों के दुःख को सहन नहीं कर सकता। उसी प्रकार विश्वपिता भी हम बच्चों के दुःख को सहन नहीं कर सकते। इसलिए ऐटम बम विस्फोट कराके हम सभी के दुखों का अंत करने के कारण ही उनका नाम पड़ा है- “हर-2 बम-2”। साइण्टिस्ट ने तो मात्र ऐटम बम्ब बना दिए; पर उसको यूज़ करने की ताकत तो उनमें नहीं है; क्योंकि वो जानते हैं- दुनिया के विनाश के साथ-2 उनका भी अंत निश्चित है। ये ऐटम बम्ब सिर्फ पृथ्वी पर ही नहीं; लेकिन पानी और आसमान में भी बिछाए हुए हैं। जिसके लिए भगवान ने कहा हुआ है- “दंष्ट्राकरालानि” (गीता 11/25) अर्थात् ये ऐटम बम्ब रूपी दाढ़ों के बीच में सारी दुनिया चबाई जाने वाली है। उससे विनाश के बाद, फिर नई सृष्टि की शुरुआत करने की ताकत केवल भगवान में ही है। इसलिए उन्होंने कहा है- “ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।” (गीता 13/16) अर्थात् मैं इस सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, पालनकर्ता और विनाशकारी हूँ। आपने मनु-शतरूपा की कहानी देखी होगी। मनु ने क्या किया था? प्रलयकाल में अनेक प्रकार के बीजों को एकत्रित किया था। ये कोई स्थूल बीज की बात नहीं है, ये चैतन्य बीज की बात है। जिसके लिए भगवान ने कहा है- “लोकान् समाहर्तुम्।” (गीता 11/32) अर्थात् वे कलियुग के अंत में हर धर्म से चुनी हुई श्रेष्ठ-2 आत्माओं को संगठित करने के लिए लगा हुआ हूँ। ये चैतन्य बीज हैं जिनके द्वारा ही नई सृष्टि की शुरुआत होनी है।
यही तो दिक्कत है! हाफ नॉलेज इज़ डेंजरस। अधूरा ज्ञान घातक होता है। इसलिए पूरा ज्ञान लेना अनिवार्य है। शिवबाबा का कहना है- जिन गुरुओं ने एकव्यापी भगवान को सर्वव्यापी बता दिया, लोगों की बुद्धि को भगवान की तरफ से हटा दिया, अपनी पूजा बैठ करवाने लगे, उनको मारो ज्ञान की गोली। शिवबाबा स्थूल बॉम्ब-बारूद की बात नहीं करते हैं। परमात्म बॉम्ब की बात परमात्मा की प्रत्यक्षता से है। जब बॉम्ब विस्फोट होते हैं तो चारों और दुर्गन्ध फैलती है, उसी प्रकार जब शिवबाबा की प्रत्यक्षता होती है तब मीडिया, अख़बार, न्यूज़ और टी.वी. चैनल्स के द्वारा, इण्टरनेट के द्वारा उनकी ग्लानि रूपी दुर्गन्ध फैलती है। बच्चे का भी जब जन्म होता है तो गंदगी के साथ ही होता है। उसी प्रकार शिवबाबा का भी जब प्रत्यक्षता रूपी जन्म होता है तो ग्लानि के साथ होता है।

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