परमपिता परमात्मा शिव और उनके दिव्य कर्तव्य

जब सारी ही आत्माएँ आत्म-लोक से इस सृष्टि पर उतरने को होती हैं, तब अन्त काल से कुछ ही पहले परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टि पर आते हैं और आकर इस सृष्टि-रूपी रंगमंच की जो हीरो-हीरोइन पार्टधारी आत्माएँ हैं, कोई तो होंगी, अच्छे-बुरे पार्टधारी तो होते ही हैं। तो इस सृष्टि-रूपी रंगमंच पर कोई तो सबसे ज़्यादा श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले होंगे। उनको अंग्रेजों में कहा जाता है- ‘एडम और ईव’, मुसलमानों में कहा जाता है ‘आदम और हव्वा’ और हिन्दुओं में कहा जाता है ‘‘त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः। त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।’’(गीता 11/38) वे सृष्टि के आदि हैं । उनकी शुरुआत किसी ने नहीं बताई कि वे आदिशक्ति + आदिदेव कब से हैं, उन्हें जन्म देने वाला कौन है। किसी को पता ही नहीं है। हिन्दू परम्परा में उनको ‘आदिदेव’, मुसलमानों में ‘आदम’, क्रिश्चियनों में ‘एडम’ और जैनियों में ‘आदिनाथ’ कहा जाता है। देखिए आप, शब्दों में कितना साम्य है।
पहले दुनिया में एक ही धर्म था और एकता थी। वह एकता तभी आ सकती है, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की असली भावना तभी हो सकती है जबकि सारी दुनिया एक ही युगल को अपना मात-पिता मान ले। तो वे परमपिता+परमात्मा शिवबाबा आते हैं, आकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच की हीरो-हीरोइन पार्टधारी आत्माओं (राम-कृष्ण) को उठाते हैं। वे 84 के चक्र के आखिरी जन्म में राम-कृष्ण के रूप में नहीं होते; क्योंकि 16 कला संपूर्ण कृष्ण/नारायण का राज्य तो सतयुग में था, राम का राज्य त्रेता में था। वही आत्माएँ जन्म-मरण के चक्र में नीचे कलियुग तक उतरते-2, हमारे-आपके रूप में कहीं-न-कहीं नर रूप में होती हैं। उन नर रूपों में परमपिता परमात्मा शिव प्रवेश करते हैं, जैसे गीता में एक शब्द आया है- ‘प्रवेष्टुम्’(गीता 11/54), मैं प्रवेश करने योग्य हूँ। कौन? वे सुप्रीम सोल शिव, जो जन्म-मरण के चक्र से न्यारे हैं। वे प्रवेश करके कृष्ण उर्फ दादा लेखराज के द्वारा पहले माँ का पार्ट बजाते हैं, जिसका नाम अपनी भारतीय परम्परा में रखा जाता है चतुर्मुखी ‘ब्रह्मा’। ‘ब्रहं’ माने बड़ी और ‘माँ’ माने माँ। दुनिया में सबसे जास्ती सहन करने वाली माँ होती है। परमपिता+ परमात्मा भी इस सृष्टि पर आकर पहले माँ का पार्ट प्रत्यक्ष साकार देह में बजाते हैं, जिसके लिए अपनी भारतीय परम्परा में उनकी महिमा के गीत गाए हैं- ‘‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव...।’’ वे इतना प्यार देते हैं, इतना प्यार देते हैं कि जो असुर हैं वे उनसे वरदान लेने के आदी हो जाते हैं। माँ का स्वभाव ऐसा होता है कि कोढ़ी, काना, कुब्जा, चोर, डकैत, लुच्चा, लफंगा बच्चा होगा उसको भी अपनी गोद से अलग नहीं करना चाहेगी। बाप कहेगा- ‘हट! निकल बाहर’; लेकिन माँ गोद से अलग नहीं करेगी। ऐसे ही ब्रह्मा का साकार पार्ट इस सृष्टि-मंच पर पहले है।... For more information, to click link below

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