आदि सनातन देवी देवता धर्म

इतिहास - भारत को विश्व का प्राचीनतम खण्ड माना जाता है, जहाँ से हिन्दू धर्म का उद्गम हुआ है। वास्तव में हिन्दू किसी धर्म का नाम नहीं है; क्योंकि किसी भी धर्म का नाम धर्मखण्ड के नाम पर नहीं पड़ता है। भारत का नाम सिन्धु नदी के कारण हिन्दुस्तान पड़ा जिसके उपरान्त भारतवासी भी अपने को सिन्धुवासी से हिन्दू कहलाने लगे। हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम ‘सनातन धर्म’ है। सनातन धर्म को समग्र विश्व में सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। परंतु फिर भी सनातन धर्म के अनुयायियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन घटौती होती जा रही है और बाद में उदित होने वाले धर्म, हिन्दू धर्म के मुकाबले अधिक समृद्ध, संगठित एवं मजबूत होते जा रहे हैं। प्राचीनतम खण्ड होने के बावजूद भी, भारत देश की गिनती आज विश्व के समृद्ध देशों में नहीं की जाती है । इसका मूल कारण है कि सभी धर्मावलंबियों को अपने एक धर्म, एक धर्मपिता एवं एक धर्मशास्त्र पर आस्था है और यदि हिन्दुओं की बात करें तो आज उन्हें न अपने कोई एक निश्चित धर्मशास्त्र का ज्ञान है, न ही धर्मपिता का और अपने धर्म का नाम भी भूल गए तो भला अपने असली धर्म पर आस्था भी कैसे होगी ? यही कारण है हिन्दू धर्म की दुर्गति का; परंतु अब समय आ गया है कि हम सनातन धर्म के धर्मपिता को पहचानें; क्योंकि सनातन धर्म ही सब धर्मों का मूल बीज है, यदि बीज को सुधार लिया तो सारा वृक्ष सुधर जाएगा ।

सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है तो उसका स्थापक भी सबसे प्राचीन पुरुष ही होना चाहिए - सभी धर्मों में यह मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में कोई प्रथम पुरुष एवं प्रथम स्त्री हुए, जिनसे सारी सृष्टि का विस्तार हुआ। उन्हें विभिन्न धर्मों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे मुसलमानों में आदम-हव्वा, क्रिश्चियन्स में एडम-ईव, जैनियों में आदिनाथ-आदिनाथिनी। हिन्दुओं में महादेव शंकर को आदिदेव एवं देवी पार्वती को आदिदेवी माना जाता है। जिस प्रकार आदम का जन्म व मृत्यु नहीं दिखाई जाती, उसी प्रकार महादेव शंकर का हिन्दू शास्त्रों में जन्म व मृत्यु का कोई वर्णन नहीं है। वास्तव में आदिदेव शंकर यानी आदम ही सृष्टि के प्रथम पुरुष हुए हैं। 
सभी धर्मपिताओं के चेहरे से निराकारी स्टेज झलकती है तो अवश्य ही अव्वल नम्बर धर्मपिता तो सबसे जास्ती निराकारी स्टेज वाला होना चाहिए - महात्मा बुद्ध, जीसस क्राइस्ट, गुरू नानक आदि सभी धर्मपिताओं की निराकारी स्टेज ने उनके धर्मावलंबियों को आकर्षित कर उन्हें अपना धर्मपिता स्वीकारने के लिए विवश कर दिया। उन धर्मपिताओं का भी जो पिता (अल्लाह अव्वल दीन) होगा, वो तो अपनी सम्पूर्ण स्टेज में उनके मुकाबले जास्ती निराकारी स्टेज वाला ही होगा। आदम को सभी धर्म के धर्मपिताएँ भी अपना आदि आदमी मानते हैं। एकमात्र आदिदेव शंकर ही के चित्र हैं जिनसे जास्ती निराकारी स्टेज दुनिया में किसी भी धर्मपिता की देखने में नहीं आती। सबसे जास्ती याद में तल्लीन चित्र शंकर के ही पाए जाते हैं। विश्व भर में की गई खुदाइयों में भी सबसे जास्ती तादाद में शंकर की निराकारी स्टेज वाली नग्न मूर्तियाँ पायी गई हैं।

सभी धर्मपिताओं की जन्म स्थली पवित्र तीर्थ स्थान के रूप में पूजनीय एवं माननीय है तो अवश्य ही सनातन धर्म के धर्मपिता की जन्म स्थली सबसे प्राचीन एवं अव्वल तीर्थ होना चाहिए - मोहम्मद की जन्म स्थली मक्का, महात्मा बुद्ध की लुंबिनी, गुरू नानक की नानखाना साहिब, क्राइस्ट की बेथ्लेहेम, ये सभी जन्म स्थली  उन धर्मों के धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थली हैं। हिन्दुओं में देखा जाए तो अनेक तीर्थ स्थल हैं, विशेष रूप से उत्तर भारत में सर्वाधिक तीर्थ स्थान मौजूद हैं। उनमें भी फरूर्खाबाद स्थित कम्पिल नगरी ऐसा तीर्थ स्थान है जिसे सब तीर्थों का भान्जा माना जाता है। भान्जा पक्ष सर्वाधिक माननीय होता है। कहा जाता है ‘कम्पिला सदृशं तीर्थ भूमण्डले नास्ति क्विचित’ अर्थात कम्पिल के समान भूमण्डल पर अन्य कोई तीर्थ नहीं। यदि कम्पिल के उद्भव पर विचार किया जाए तो यह नगरी सतयुग में विद्यमान थी। इस प्रदेश का तप और दार्शनिक चिन्तन अभूतपूर्व रहा है। इस नगरी का महत्व आदि देश के रूप में होने से काम्पिल्य को भी ज्ञानतीर्थ और सिद्धभूमि माना गया है। त्रेतायुग में कम्पिल की कीर्ति अवर्णनीय थी। ऐसा कहा जाता है कि रावण भी यहाँ के वैभव को देखकर आश्चर्यचकित हो गया था। वास्तव में काम्पिल्य प्रदेश भारत के हृदय और मस्तिष्क के रूप में धड़कन उत्पन्न करता रहा है। इस नगरी के बारे में उपनिषदों आदि ग्रंथों में प्रभूत सामग्री बिखरी पड़ी है। काम्पिल्य की गणना भारत की प्राचीनतम नगरियों में की जाती है। विमलनाथ पुराण में कहा है- “तदैव कंपिलानाम्ना विद्यते परमापुरी। दोषैर्मुक्ता गुणैयुक्तः धनाढय, स्वर्णसंग्रहाः ।” अर्थात कम्पिल नाम की परमपुरी सभी दोषों से मुक्त है। यहाँ के निवासी गुणवान, धनवान और स्वर्ण के स्वामी हैं। जैन ही नहीं बुद्ध साहित्य में भी काम्पिल्य की कीर्ति का अद्भुत वर्णन है। यही क्षेत्र आदि सृष्टि का स्थल माना गया है।

सभी धर्मों का नाम उनके धर्मपिता के नाम पर पड़ता है तो अवश्य ही सनातन धर्म का नाम उस धर्म के धर्मपिता के नाम से मेल खाना चाहिए - 
शंकर को ज्ञानेश्वर एवं योगेश्वर की उपाधि दी जाती है , वहीं दूसरी ओर ब्रह्मा का बड़ा पुत्र सनतकुमार जो ज्ञान एवं योग में बड़े पारंगत थे, उन्हें भी यही उपाधि दी जाती है; परंतु विचार करने योग्य बात है कि योगियों एवं ज्ञानियों के ईश्वर अर्थात श्रेष्ठ शासनकर्ता भला दो कैसे हो सकते हैं? इसका स्पष्टीकरण देते हुए ऋग्वेद में ऋचा आयी है- 'एको सदविप्रा बहुदा वदन्ति।'अर्थात् एक ही सच्चा ब्राह्मण है, जिसकी अलग-अलग नामों से महिमा की गई है- कहीं राम-कृष्ण, कहीं शंकर आदि। वास्तव में एक ही व्यक्तित्व है जो सबका ईश्वर है, वह है आदि पुरुष/सनतकुमार/शंकर जिसके नाम पर सनातन धर्म का नाम पड़ता है।

उपरोक्त सभी तथ्यों पर दृष्टिकोण डालते हुए यही निष्कर्ष निकलता है कि सनातन धर्म के धर्मपिता सृष्टि के प्रथम पुरुष आदम/आदिदेव शंकर ही सनतकुमार हैं, जिनका शासन समस्त सृष्टि पर था। इसी कारण उन्हें महेश अर्थात महान शासनकर्ता भी कहा जाता है। उनके द्वारा ही सनातन धर्म की स्थापना होती है, जिसका पूरा नाम है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। देवतायें कोई हमसे भिन्न नहीं होते अपितु हम मनुष्य ही दिव्य गुणों की सम्पूर्ण धारणा से देवता बन सकते हैं। जिसका प्रमाण श्रीमद भगवत गीता में भी मिलता है, जिसमें भगवान अर्जुन को उपदेश देते हैं कि ‘हे नर अर्जुन! तू ऐसी करनी कर कि नर से नारायण बन जाए, हे नारी द्रौपदी तू ऐसी करनी कर कि नारी से लक्ष्मी बन जाए।’ जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म सनतकुमार के द्वारा स्थापन होता है तो अवश्य ही उस धर्म की धारणाओं का ज्ञान देने वाले आदिदेव सनतकुमार ही होंगे; परंतु विचार करने योग्य बात है कि इतनी उत्कृष्ट धारणाओं का ज्ञान जिसके अनुसरण से देवी-देवता बन जाएँ, ऐसे ज्ञान की जानकारी अर्जुन/आदम/आदिदेव महादेव को किसने दी होगी? कथा भी दिखाते हैं कि आदम को भगवान ने रचा। परमपिता+परमात्मा शिव निराकार भगवान जिन्हें हर धर्म में भिन्न-भिन्न नामों से मान्यता दी जाती है, वे इस सृष्टि पर आते हैं तो सर्वप्रथम आदम विवस्तत सूर्य नाम के बड़े बच्चे को ही गीता ज्ञान की जानकारी देते हैं। आदिदेव शंकर ही उस गीता ज्ञान को सम्पूर्णतया आत्मसात कर, योगबल के आधार पर भगवान शिव के समान शक्ति धारण कर, ईश्वर अर्थात श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ शासनकर्ता सिद्ध हो जाते हैं। जिसके लिए श्वेताश्वतरोपनिषद में भी लिखा है ‘एको ही रूद्रो न द्वितियाय तस्थुः!’ अर्थात ईश्वर रूद्र केवल एक और अकेला है, उसके अलावा दूसरे के लिए कोई आधार नहीं है। आदिदेव शंकर ही हैं जिनका दूसरा नाम रूद्र भी है। छान्दोग्य उपनिषद् में भी लिखा है ‘एकम् एवद्वितीमस्ति!!’ अर्थात ईश्वर एक और अकेला ही है, दूसरा कोई ईश्वर नहीं है।
यह तथ्य सर्वविदित है कि जो सृष्टि का आरम्भकर्ता होता है वह विनाश करने का भी सामर्थ्य रखता है। परमपिता परमात्मा शिव आदम/आदिदेव शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश एवं नयी दुनिया की स्थापना कर रहे हैं/ जहाँ समस्त वसुधा कुटुम्ब होगी, एक ही धर्म एक ही राज्य होगा, वह है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। 
परंतु उस व्यक्ति को कैसे पहचाना जाए कि अमुक व्यक्ति ही आदम/आदिदेव/सनतकुमार हो सकता है-

रहवास- हिन्दुओं में उत्तर प्रदेश में फर्रुखाबाद स्थित कंपिल नगरी ही सबसे ऊँच तीर्थ स्थली है, जिसकी जानकारी पहले ही दी जा चुकी है। कहा जाता है कि काम भावना को समूल नष्ट कर देने वाला स्थान होने से इसका नाम काम+पील अर्थात काम्पील पड़ा। सिद्ध होता है कि सनातन धर्म के धर्म स्थापक अवश्य ही कंपिल नगरी के रहवासी होंगे; परंतु प्राचीन होने के कारण जिस प्रकार सनातन धर्म का नाम एवं धर्मपिता का नाम लोप हो गया, उसी प्रकार धर्मपिता की जन्म स्थली का महत्व भी मनुष्यों के मस्तिष्क पटल से मिट गया, जिस कारण आज कपिल मुनि के नाम पर बसाया गया कम्पिल मात्र एक बीहड़ गाँव बनकर रह गया है।

नाम- परमपिता शिव सृष्टि पर आते हैं तो जिस गीता ज्ञान यज्ञ की स्थापना करते हैं उसका नाम देते हैं ‘अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ’; क्योंकि जिसको निमित्त बनाते हैं वह है अविनाशी रूद्र शंकर देवों के देव, जो पुराने धर्मों को विनाश करने में किसी से डरने वाले नहीं हैं। भले कोई कितनी भी ग्लानि करे या विरोध करे; परंतु वीरता पूर्वक सभी का सामना करने वाले, वीरों के वीर, जो वीरों में राजा अर्थात इन्द्र ही है। ऋग्वेद में ऋचा आयी है- ‘य एको अस्ति दंसना महॉ उग्रो अभि व्रतै‘ अर्थात वह केवल एक है जो अपनी अद्भुत क्रियाओं और दृढ़संकल्प से महान एवं सर्वशक्तिमान है।

कुल/गोत्र-
शास्त्रों में दिखाया जाता है कि सनतकुमार ब्राह्मण थे, वहीं दूसरी ओर शंकर को भी जनेऊ धारण किए हुए दिखाते हैं। स्पष्ट होता है वे अवश्य ही पुरुषार्थी शरीर से किसी ब्राह्मण कुल में जन्मे होना चाहिए। ब्राह्मणों में भी ऊँच ब्राह्मण कुल, चोटी के ब्राह्मण ही कहे जाते हैं। स्कन्द पुराण में कम्पिल के सोमयाजी ब्राह्मणों के बारे में लिखा है "आसीत्कांपिल्यनगरे सोमयाजि कुलोदभवः। दीक्षितो यज्ञदत्ताख्यो यज्ञविद्यां विशारदः।।" अर्थात कम्पिल में सोम यज्ञ करने वाले दीक्षित ब्राह्मणों का निवास था जो (ज्ञान-)यज्ञ विद्या में परम विशारद थे। इसी कारण उनके द्वारा ही अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ का आरम्भ होता है।

परंतु क्या देखने मात्र से या बात करने मात्र से यह निश्चय किया जा सकता है कि वही आदि पुरुष सनतकुमार हैं??? मुण्डकोपनिषद में लिखा है ‘न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा...ज्ञानप्रसादेन पश्यते।’ अर्थात् ईश्वर न तो इन आँखों से प्राप्त किया जा सकता है और न वाणी से, बल्कि ज्ञान से देखा जा सकता है। गीता में भी कहा है ‘ज्ञान ज्ञम्यम्’ अर्थात् वह ज्ञान द्वारा ही पाने योग्य है। उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से ही उनकी पहचान की जा सकती है। जिस प्रकार सृष्टि में अनेक धर्मपितायें आए, देखने में भले ही साधारण थे; परंतु उनके द्वारा सुनाया ज्ञान इतना प्रभावशाली था कि लाखों करोड़ों को आकर्षित कर लिया, कहा जाता है कि बौद्ध धर्म की एक स्पीच से 60-70 हजार को बौद्धी बना लिया। आज क्राइस्ट के अनुयायियों की संख्या 200-250 करोड़ है, लगभग दुनिया की आधी मानवीय आबादी, मुसलामानों का भी करोड़ों की तादाद का हुजूम है। अनुमान लगाया जा सकता है कि उन धर्मपिताओं का भी जो पिता है आदि पुरूष, उनका ज्ञान उन धर्मपिताओं के मुकाबले कितना प्रभावशाली होना चाहिए, कि जो धर्मपिता नहीं कर पाए वो वह करके दिखाए। ग्रेट फादर्स कहलाए जाने वाले धर्मपिताएँ आए, अपना ज्ञान सुनाया, धर्म स्थापन किया, चले गए और सृष्टि का पतन ही होता रहा। उन धर्मपिताओं से कुछ प्राप्ति नहीं हुई, और ही अनेकता एवं बँटवारा होता गया, परंतु उनका भी जो पिता है ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर, उनसे तो सभी को अवश्य ही प्राप्ति होनी है। इसलिए ही आज भले ही सभी धर्म वाले निराकार को भगवान मानते हैं; परंतु फिर भी सबकी नज़रें भविष्य रक्षक (फ्यूचर सेवियर) पर गढ़ी हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति आएगा जो समग्र विश्व को एक कर देगा एवं विश्व में पुनः सुख-शांति की स्थापना कर देगा जिसे हिन्दू ‘कलंकी‘, मुसलमान ‘मेहदी‘, यहूदी ‘मसीहा', बौद्धी ‘मैत्रेय’ नाम देते हैं। वह कोई अनेक नहीं अपितु एक ही है। सिद्ध होता है कि समग्र विश्व उस एक साकार व्यक्तित्व को ही भगवान एवं अपना ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर मानते हैं। इसलिए ही गायन है हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में हैं भाई-भाई।






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