परंतु क्या देखने मात्र से या बात करने मात्र से यह निश्चय किया जा सकता है कि वही आदि पुरुष सनतकुमार हैं??? मुण्डकोपनिषद में लिखा है ‘न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा...ज्ञानप्रसादेन पश्यते।’ अर्थात् ईश्वर न तो इन आँखों से प्राप्त किया जा सकता है और न वाणी से, बल्कि ज्ञान से देखा जा सकता है। गीता में भी कहा है ‘ज्ञान ज्ञम्यम्’ अर्थात् वह ज्ञान द्वारा ही पाने योग्य है। उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से ही उनकी पहचान की जा सकती है। जिस प्रकार सृष्टि में अनेक धर्मपितायें आए, देखने में भले ही साधारण थे; परंतु उनके द्वारा सुनाया ज्ञान इतना प्रभावशाली था कि लाखों करोड़ों को आकर्षित कर लिया, कहा जाता है कि बौद्ध धर्म की एक स्पीच से 60-70 हजार को बौद्धी बना लिया। आज क्राइस्ट के अनुयायियों की संख्या 200-250 करोड़ है, लगभग दुनिया की आधी मानवीय आबादी, मुसलामानों का भी करोड़ों की तादाद का हुजूम है। अनुमान लगाया जा सकता है कि उन धर्मपिताओं का भी जो पिता है आदि पुरूष, उनका ज्ञान उन धर्मपिताओं के मुकाबले कितना प्रभावशाली होना चाहिए, कि जो धर्मपिता नहीं कर पाए वो वह करके दिखाए। ग्रेट फादर्स कहलाए जाने वाले धर्मपिताएँ आए, अपना ज्ञान सुनाया, धर्म स्थापन किया, चले गए और सृष्टि का पतन ही होता रहा। उन धर्मपिताओं से कुछ प्राप्ति नहीं हुई, और ही अनेकता एवं बँटवारा होता गया, परंतु उनका भी जो पिता है ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर, उनसे तो सभी को अवश्य ही प्राप्ति होनी है। इसलिए ही आज भले ही सभी धर्म वाले निराकार को भगवान मानते हैं; परंतु फिर भी सबकी नज़रें भविष्य रक्षक (फ्यूचर सेवियर) पर गढ़ी हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति आएगा जो समग्र विश्व को एक कर देगा एवं विश्व में पुनः सुख-शांति की स्थापना कर देगा जिसे हिन्दू ‘कलंकी‘, मुसलमान ‘मेहदी‘, यहूदी ‘मसीहा', बौद्धी ‘मैत्रेय’ नाम देते हैं। वह कोई अनेक नहीं अपितु एक ही है। सिद्ध होता है कि समग्र विश्व उस एक साकार व्यक्तित्व को ही भगवान एवं अपना ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर मानते हैं। इसलिए ही गायन है हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में हैं भाई-भाई।