अध्याय-10
विभूतियोग
जड़ सूर्य सतत अपनी ऊर्जा को रोशनी एवं गर्मी के रूप में विश्व-कल्याण हेतु देता रहता है। इस सौर ऊर्जा से हम बैटरी को उसकी क्षमता अनुसार चार्ज कर अपने कार्य में लगा सकते हैं। इस कारण यदि कोई बैटरी को ही ‘सूर्य’ कहने लगे तो उसे क्या कहेंगे? अवश्य मूर्ख ही कहेंगे। विभूतियों को समझने में यही भूल हुई है। कई आत्मा रूपी बैटरीज़ अपनी यथासंभव योगशक्ति चतुर्युगी के अंत में साकार में आए निराकार परमपिता परमात्मा रूपी चैतन्य ज्ञान शक्ति-सूर्य से मन्मनाभव होकर अपने भीतर भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार भर लेती हैं और जो अधिकाधिक योगशक्ति को भर पाती हैं, उन्हें यहाँ पर विभूति कहा गया है।