अध्याय-14
गुणत्रयविभागयोग
परमपिता शिव की योनि रूपी माता परब्रह्म (त्वमेव माता...) है, जिसमें वे बीज बोते हैं और समस्त जड़-चैतन्य संसार को उत्पन्न करते हैं।’’ पाँच महाभूत एवं मन, बुद्धि, अहंकार के अष्टयुक्त में समस्त (दस)इंद्रियों एवं उनके (पाँच)विषयों सहित अपरा प्रकृति के रूप में शंकर का यादगार है और इन सभी (तेईस)भेदों से ऊँच और भिन्न जो शंकर का परमपिता के साथ एकात्म होने का स्वरूप है, गोपेश्वरम् में इसी रूप की पूजा स्वयं श्री कृष्ण द्वारा भी करते हुए दिखाया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि समस्त संसार का मूल कारण परमपिता का साकार परमात्मा स्वरूप शंकर का एकव्यापी रूप है।

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अध्याय -14

श्लोक उच्चारण

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संक्षिप्त व्याख्या सहित

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शब्दार्थ तथा संक्षिप्त व्याख्या सहित

ॐ शांति

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