अध्याय-15
पुरुषोत्तमयोग
यह संसार रूपी वृक्ष उल्टे अश्वत्थ वृक्ष समान है, जिसका अविनाशी बीज और मूल ‘ऊर्ध्व’ अर्थात् ऊपर की ओर है और विस्तार ‘अधः’ अर्थात् नीचे की ओर। मनुष्य सृष्टि के बीजरूप आदिदेव महादेव/आदम से उत्पन्न ब्राह्मण धर्म की ऊपर जाने वाली जड़ों वाले, अधोमुखी ब्रह्मा की पतनोन्मुखी अनेकानेक धर्मों की शाखाओं वाले तथा (कामनाकर्ता) वेदादि जिसके पत्ते हैं, ऐसे चिरकाल तक स्थित रहने वाले सृष्टि रूपी अश्वत्थ वृक्ष को ऋषियों ने अविनाशी बताया है। जो उसे जानता है, वह वेदों का ज्ञाता है।

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अध्याय -15

श्लोक उच्चारण

अध्याय -15

संक्षिप्त व्याख्या सहित

अध्याय -15

शब्दार्थ तथा संक्षिप्त व्याख्या सहित

ॐ शांति

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