अध्याय-9
राजविद्याराजगुह्ययोग
मेरी एकमात्र अध्यक्षता के कारण से ही प्रकृति समस्त जगत को ‘विपरिवर्तते’ अर्थात् विपरीत दिशा में परिवर्तित करती है।’’ इसका सीधा अर्थ है कि इस संसार का कालचक्र सतयुग-त्रेतायुग से द्वापरयुग-कलियुग की गिरती दिशा में अर्थात् देवताई-सृष्टि से आसुरी-सृष्टि की ओर प्रकृति के गुणों के आधार से घूमता है; किन्तु परमपिता की अध्यक्षता में प्रकृति इस तरह से विपरीत दिशा में परिवर्तित हो ऊपर उठ जाती है कि नए युग सतयुग आदि का ही आरंभ होता है

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अध्याय -9

श्लोक उच्चारण

अध्याय -9

संक्षिप्त व्याख्या सहित

अध्याय -9

शब्दार्थ तथा संक्षिप्त व्याख्या सहित

ॐ शांति

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