अध्याय-11
विश्वरूपदर्शनयोग
मनुष्य-सृष्टि के बीजरूप अनेक राजयोग-सहयोगी भुजाओं वाले, द्वापुर से भ्रष्टेन्द्रियों के कर्महिमायती कुरुवंशी वैश्यरूप पेट, देवरूप मुख और रुद्र+अक्ष रूप नेत्र वाले, ऐसे सब ओर अनंतरूप आपके विराट वटवृक्ष को देखता हूँ। हे विश्वेश्वर! हे विश्वरूप! फिर भी मैं आपके लिंगरूप रथ में न अंत को, न मध्य को, न आदि को ही देख पाता हूँ।