अध्याय-18
मोक्षसंन्यासयोग
‘‘सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।’’ (अध्याय-18, श्लोक-66) सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि दैहिक धर्मों को त्याग कर उस अवतरित एकव्यापी स्वरूप, साकार में निराकार शिव-शंकर की शरण में जाना है। परमपिता परमात्मा शिव-शंकर के एकव्यापी स्वरूप द्वारा गीता-ज्ञान प्रदान किया जा रहा है। यह वही सच्ची गीता है जो सर्वशास्त्रमयी कही जाती है। यह गीता परम पवित्र, समस्त संसार को मुक्ति-जीवनमुक्ति देने वाली है, जो समस्त धर्म वालों का उद्धार कर समस्त धर्मों की माई-बाप कहलाई जाती है। अब यह दोज़ख, हेल, नारकीय कलियुग की आसुरी दुनिया खत्म होकर नई जन्नत, पैराडाइज़, सतयुगी दुनिया आ रही है, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ स्थापित हो रहा है।

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अध्याय -18

श्लोक उच्चारण

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शब्दार्थ तथा संक्षिप्त व्याख्या सहित

अध्याय -18

संक्षिप्त व्याख्या सहित

ॐ शांति

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